mareez e ishq
प्यार क्या होता है ? यह सवाल इंसान अपनी जिंदगी में दो ही बार पूछता है । पहले जब उसे कोई मिल नहीं रही होती, और दूसरी जब उसके पास वक्त ही वक्त हो ।और मैं वह दूसरे किस्म का इंसान हूं | 4 दिन से मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं चल रही है तो मेरे खाली वक्त पर मैं यह सवाल पूछ ही रहा था कि तभी मेरे पापा की आवाज आई।
“राहुल तैयार हो जा डॉक्टर के पास हॉस्पिटल जाना है ।”
तो फिर क्या चेयर में रखी शर्ट और बेड में पड़ी पेंट पेहन के में पापा की हौंडा के पीछे बैठ गया । पापा से बात किए काफी समय हो गया था । पता नहीं क्यों जब हम बड़े हो जाते है पापा से दूरियां ज्यादा और बातें कम होने लगती है । मानो हौंडा के पीछे वाली सीट पर बैठा ही था की कुछ पुरानी यादें ताजा हो गई ।
बचपन में जब मैं होस्टल जाया करता था । उस हौंडा बाइक में हम और पापा पूरे रस्ते बातें करके ही जाया करते थे, मानो लगता था यह रास्ता कभी खत्म ही ना हौ, और जब मेरा हॉस्टल नजदीक आने लगता था पता नही केसे मेरे ऑखौ से आंसू आने लगते थे और उसके बाद पापा मुझे कहते थे बेटा जब घर की याद आने लगे , तो छोटे बच्चों को देख लिया करना और यह कहते ही मेरे आंसू रुख से जाते थे ।
यह सब मैं पापा को कहने ही जा रहा था कि शायद मैं यह भूल गया था की ‘ छूटा हुआ समय और छूटे हुए लोग कभी लौट के नहीं आते ।’
ईतने मही हम हॉस्पिटल पहुंच गए और हम टिकट काउंटर से टिकट काट के, डॉक्टर साहब के तरफ चल पड़े,
पर बाहर में बैठी नर्स ने बताया की ।
“ आपका 23 नंबर है , आपको ईंतेजार करना पड़ेगा । ”
तो उधर 2 सोफ़ा खाली थी , सामने पापा और पीछे हम बैठ गए । सामने मेरी एक आंटी बैठी थी देखकर लग रहा था की 30 या फिर 40 वर्ष की होंगी और तभी पीछे से एक आवाज आती है ।
जब मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो एक छोटी बच्ची और उसके साथ येलौ टीशर्ट और ब्लैक जींस पहने एक लड़की थी और उसका चेहरा मानो कोई बॉलीवुड की हीरोइन जैसा था, शायद ना भी हो लेकिन जब इंसान प्यार में हौ तब उसको अपनी गर्लफ्रेंड का चेहरा बॉलीवुड की हीरोइन से कम नहीं लगता है ! उसे देखकर मानो मुझे इंस्टेंट कॉफी वाला प्यार हो गया ।
वैसे उसे वह काफी ष्टेटस वाली लग रही थी पर जब वह अपनी सेमसंग गैलेक्सी का टूटा हुआ स्क्रीन वाला फोन निकाली, मैंने सोचा इतनी भी अमीर है नहीं !
आंटी ने उसे ‘सोनिया' नाम से पुकारा । आंटी ने सोनिया को बूलाते ही मानो, मैंने मन ही मन अपना
शादी का कार्ड भी बनवा लिया था, राहुल वेड्स सोनिया । आंटी ने फिर उसे बोला
“ बेटी अभी
कहाॅ पढ़ रही हो ? ”
सोनिया:-“ आंटी रांची में बीकोम पढ़ रही हुॅं । ”
आंटी:- “ अच्छा C.A ! ”
यह सुनकर मैं दुनिया के तमाम अंकल और आंटीऔं को यह कहना चाहता हूं की हर एक साइंस पढ़ने वाला
बच्चा इंजीनियर नहीं बनता, वैसे ही हर एक कॉमर्स पढ़ने वाला बच्चा C.A नहीं बनता और लेकीन लाख
कोशिश कर लो पर यह कभी उनको समझा नहीं पाओगे और
मुझे लगता है यह बात सोनिया अच्छे से जानती थी इसीलिए उसने जवाब में दिया ।
“ हां हां आंटी
वहीं ”
फिर कया वो मेरे बगल वाली दो सीटर सोफ़ा पर आकर बैठ गई, इस बात पर मुझे ताज्जुब हुआ क्योंकि आज तक मेरे सामने आकर बहुत ही कम लड़कियां बैठी है या कह सकते हैं कभी नहीं बैठी है ।
इस बात पर मैं भगवान को थैंक यू बोलने ही जा रहा था की, तब मैंने आमने-सामने सर को घुमाया तो देखा की सब सीट भरे पड़े थे तो उसके पास ऑप्शन थे नहीं इसीलिए वो सामने वाली सोफा पर बैठ गई ।
फिर मैं बात चालू करने ही वाला था, तब याद आया पापा तो उसके बगल मे ही बैठे है । वैसे तो मैं मॉडर्न हूॅं, लेकिन मेरे पापा नहीं, कहीं उनको यह ना लगे कि मेरा लड़का हाथ से निकल गया । इसीलिए मैं चुप रहा ।
बात तो कर नहीं सकते थे पर हमेशा से मेरा एक आदत रही है, जब भी मैं खाली बैठा रहता हूॅं किसी के साथ भी कहानियाॅं बनाने लग जाता हूॅं । फिर क्या मैंने सोनिया के साथ मन ही मन उसे प्रपोज और शादी कर लिया और Goa मे घूमते-घूमते हमने अपने बच्चों का नाम भी रख लिये थे ।
प्यार में रहकर अगर आपने अपने बच्चों का नाम नहीं रखा तो आपने प्यार ही क्या किया ।
तो Goa Beach पे हम स्विमिंग कर ही रहे थे कि तभी मुझे याद आया कि मुझे तैरना नहीं आता तो वह मुझे बचाते-बचाते खुद ही डूब गई, फिर तभी आवाज आती है
“15 से 20 आप लोग का टाइम आ गया है ”
जब मैं अपनी ख़्यालो की दुनिया से वापस आया, मैंने देखा तो सोनिया और उसकी बहन नहीं थी । थोड़ी देर बाद मैंने देखा, वो दोनों एक साथ Kurkure लेकर आ रही थे ।
मैंने सोचा कहानी कन्टिन्यू करते है पर दिक्कत यह थी कि मैंने कहानी में उसे डूबा दिया था, पर मेरी बॉलीवुड की कहानी थी लॉजिक कौन पूछता है, Part-2 बना लेते हैं । जैसे ही मैंने Part-2 चालू करने ही वाला था कि सामने से नर्स की आवाज आती है, “20 से 25 आप लोगों का टाइम आ गया है ।” मेरा नंबर 23 था मानो नर्स को मैं मन ही मन बोल रहा था ‘टाइम तो आया नहीं और आपने आने दिया नहीं’ । और मैं डॉक्टर साहब की ओर निकल गया ।
डॉक्टर साहब को दिखाने के बाद मुझे और पापा को नीचे मेडिकल वार्ड में दवाई लेकर चले जाना था । लेकिन एक आखरी बार मैं सोनिया को देखना चाहता था इसीलिए मैंने पापा को पहले जाने दिया और थोड़ा रुक के सोनिया के तरफ एक आखरी बार देखने लगा, पर यह मैं शायद भूल गया था की ‘ छूटा हुआ समय और छूटे हुए लोग कभी लौट के नहीं आते, लेकिन हम एक उम्मीद रखते हैं की वह लोग हमें वापस मिलेंगे और उस दिन जो बातें अधूरी रह गई थी वह पूरा कर देंगे ’ और यही उम्मीद लेकर मैं उस दिन वहाॅं से चला गया ।